रात का वो सन्नाटा रह-रहकर भयंकर वातावरण पैदा कर रहा था और उसपर बार-बार झींगुर की टर्राने की आवाज ख़ामोशी में चार-चाँद लगा रही थी। दोलन घड़ी की वो बार-बार टिकटिक-टुकटुक की आवाज न जाने क्यों आज मेरे मन में अशांति उत्पन्न कर कर रही थी। थोड़ी ही देर पहले भोजन से उठकर मैं अपने कमरे में एक भूतिया उपन्यास पर विचार कर रहा था। तभी एकाएक दरवाजे पर किसी जाने-पहचाने शख़्स की चिंघाड़ने की आवाज सुनाई पड़ी। मैं बहुत डर गया था संभवतः उपन्यास का चलचित्र मेरे दिमाग में जीवित हो उठा था ! हिम्मत करके मैंने दरवाजा खोला। मिठाईलाल चाट वाला ! मैं ऊपर से नीचे की ओर उसे घूरने लगा। वह बहुत ही घबराया हुआ लग रहा था। मैंने उससे पूछा, अरे ! मिठाई लाल इतनी रात को कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा तुम पर। सब ठीक तो है !
मिठाईलाल - कुछ ठीक नहीं है कलुआ !
कलुआ - क्यूँ क्या हुआ ?
मिठाईलाल - कक्का जी हस्पताल में पसरे हैं। काफी चोट लगी है उनको !
कलुआ ( आँखें फाड़कर आश्चर्य से ) - अरे ! ये सब कैसे हुआ ? और कहाँ ?
अरे क्या बताऊँ कलुआ भईया ! कल कक्का जी के पुस्तक का विमोचन है आज शाम को मैं और कक्का जी मंत्री जी के पास निमंत्रणपत्र व पुस्तक की एक प्रति लेकर उनको विमोचन हेतु आमंत्रित करने चले गए। गेट पर ही उनके मुस्टंडे लठैतों ने रोक लिया। हमने उन्हें आने का उद्देश्य भी बताया फिर भी उन्होंने हमारी एक न सुनी। कक्का जी भी ताव -पैबंद ! मंत्री जी से मिलने का हठ करते हुए वहीं गेट पर ही धरने पर बैठ गए और कहने लगे मैं मंत्री जी से मिले बिना नहीं जाऊँगा। मंत्री जी के लठैतों ने कक्का जी को बार-बार समझाया पर वे नहीं माने। अंत में लठैतों ने मंत्री जी के पीए को फोन किया। कुछ देर बात करने के बाद अचानक आवास के अंदर से कुछ और लठैत हवा में लाठी लहराते हुए गेट पर आ गए और लठैतों के सरदार का इशारा पाते ही हम पर टूट पड़े। फिर क्या था ,कक्का जी की वो तुड़ाई हुई ,वो तुड़ाई हुई पूछो मत ! एक लठैत कक्का जी की धोती खींचने लगा और एक ने कक्का जी की बाईं और दूसरे ने दाईं टाँग पकड़ रखी थी और बचे -खुचे कक्का जी की निर्मम धुलाई करते नज़र आ रहे थे। किताब की प्रति सड़क पर पड़ी थी संभवतः जिसका विमोचन कक्का जी की धुनाई के साथ प्रारम्भ हो चुका था। उनकी ज़ुबान सड़क को स्पर्श करती नजर आ रही थी। ओह ईश्वर ! क्या बताऊँ कलुआ ! कक्का जी की कविताओं का वीररस अब तक सुना था पर करुणरस इतना भयानक होगा विश्वास न था। ख़ैर किसी तरह आस-पास के लोगों ने कक्का जी की जान बचाई और उन्हें हस्पताल पहुँचाया। अभी भी कक्का जी बेहोशी की हालत में अपने पुस्तक का विमोचन मंत्री जी से करवाने के सपने देख रहे हैं।
कलुआ तुम ही उनको समझाओ नहीं तो गज़ब हो जाएगा !
कलुआ तुम ही उनको समझाओ नहीं तो गज़ब हो जाएगा !
कलुआ ( टालमटोल करते हुए ) - अरे मिठाईलाल ! सोमवार को मेरी प्रस्तुति है लगभग दो-चार घंटे तो लग ही जायेंगे। कल ''रवींद्र'' जी आ रहे हैं हमारे पाठकों के बीच सो मैं अभी नहीं आ सकता। तुम चलो ! मैं अपना काम निपटाकर आता हूँ और कक्का जी को समझाता हूँ। किसी महान लेखक ने कहा था
जब-जब राजनीति डगमगायेगी
साहित्य उसे संभाल लेगा !
परन्तु आज यह गंभीर विषय बनता जा रहा है। कौन किसको संभालता नजर आ रहा है मुझे सभवतः बताने की आवश्यकता नहीं।
ख़ैर चलिए ! आप सभी पाठकों को आज ऐसे व्यक्तित्व से मिलवाता हूँ जिसके नाम व लेखन के जज़्बे से शायद ही हिंदी ब्लॉग जगत का कोई भी पाठक अथवा रचनाकार अपरिचित हो। जिसके कलम की एक-एक स्याही निस्वार्थ भाव से क्रांतिकारी शब्दों की रचना में निरंतर प्रयत्नरत है। समसामयिक मुद्दे इनकी लेखनी का मूल स्रोत और लेखन भी एक चमत्कृत शैली में प्रगतिवादी विचारों का शंखनाद करती हुई समाज को सत्य के मार्ग पर निरंतर चलने को प्रेरित करती है।
आदरणीय 'रवींद्र' सिंह यादव जी
'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला की इस कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत व अभिनन्दन करता है।
परिचय : आदरणीय 'रवींद्र' सिंह यादव जी
माता - स्वर्गीया श्रीमती फूलवती यादव
जन्म - 14 जनवरी 1968 , महाराजपुरा ( डिलौली ), चकरनगर, इटावा (उत्तर प्रदेश) 206125 में साधारण किसान परिवार में जन्म।
कार्यक्षेत्र - चिकित्सा, कृषि, स्वतंत्र लेखन, ब्लॉगिंग, समाज सेवा
लेखन विधाएं - कविता , कहानी , लेख , संस्मरण, रिपोर्ताज़ , हाइकु, वार्ता, रेडियो स्क्रिप्ट लेखन आदि
प्रकाशित कृतियाँ - 1. प्रिज़्म से निकले रंग (काव्य संग्रह -2018 )
ISBN: 978-93-86352-79-8
2. पंखुड़ियाँ 24 लेखक 24 कहानियाँ (सामूहिक कहानी संग्रह- 2018 )
3. प्यारी बेटियाँ (साहित्यपीडिया सामूहिक काव्य संग्रह-2018 )
सम्पादन- दीपदर्शन-92 (स्मारिका )
सम्मान - साहित्यपीडिया काव्य सम्मान
प्रसारण - आकाशवाणी ग्वालियर मध्य प्रदेश से 1992 से 2003 के बीच कविता, कहानी, वार्ता एवं विशेष कार्यक्रमों का नियमित प्रसारण
ब्लॉग - 1. हिन्दी-आभा*भारत
http://www.hindi-abhabharat.com.
2. हमारा आकाश:शेष-विशेष
https://hamaraakash.blogspot.in
3. Prismatic Reflection@Ravindra Singh Yadav https://ravindrasinghyadav.wordpress.com
4. YouTube Channel- मेरे शब्द--स्वर
अन्य - कई वेबसाइट ( शब्दनगरी , प्रतिलिपि.कॉम , iBlogger.in, साहित्यपीडिया, दैनिक अमर उजाला काव्य, दैनिक नवभारत टाइम्स आदि ) एवं सामूहिक ब्लॉग ( पाँच लिंकों का आनन्द, कविता मंच आदि ) पर सक्रियता।
विशेष - अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फ़िल्म निर्देशक स्वर्गीय कुंदन शाह जी के साथ नवम्बर 2006 में फ़िल्म "थ्री सिस्टर्स" की स्क्रीनिंग के दौरान एक कार्यक्रम में मंच साझा करने का अवसर।
सम्प्रति - सफ़दरजंग एन्क्लेव, नई दिल्ली में निजी चिकित्सा संस्थान में कार्यरत।
सम्पर्क सूत्र - rsyadav.dilauli@gmail.com
मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों, क़स्बों में रहकर अध्ययन। अध्ययन के दौरान 1988 से लिखना आरम्भ किया। ग्वालियर से प्रकाशित दैनिक भास्कर, दैनिक नवभारत, दैनिक आज, दैनिक आचरण, दैनिक स्वदेश आदि समाचार-पत्रों में कविताओं और लेखों का प्रकाशन लेखन के प्रति रूचि और छपास सुख की अनुभूति को बढ़ाता गया। सन 1992 में लम्बे संघर्ष के उपरांत आकाशवाणी ग्वालियर से कविता ,कहानी ,वार्ता ,विशेष कार्यक्रम आदि के प्रसारण का अवसर मिला जो सन 2003 तक ज़ारी रहा। ग्वालियर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आयोजित कवि गोष्ठियों,विचार गोष्ठियों में नियमित काव्यपाठ एवं विचार-विनिमय।
2007 से नई दिल्ली में जीविका के लिए एक निजी चिकित्सा संस्थान में कार्यरत। पारिवारिक परिस्थितियों के चलते 2003- 2012 तक लेखन से पूर्णतः विराम लिया। स्वाध्याय ज़ारी रहा।
2012 से ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल पर सक्रिय हुआ। अक्टूबर 2016 में ब्लॉग जगत् में प्रवेश किया। ब्लॉग जगत् में सक्रियता मेरे लिए नया अनुभव था जहाँ प्रबुद्ध जनों से आत्मीय जुड़ाव स्थापित हुआ। फ़िलहाल एक पुस्तक की प्रकाशन सम्बन्धी प्रकिया में व्यस्त हूँ। आपके सहयोग ,समर्थन और आशीर्वाद से ब्लॉगिंग का सुहाना सफ़र रास्तों की तलाश करता हुआ अपनी मंज़िल की ओर अग्रसर है।
आदरणीय रवींद्र सिंह यादव जी की एक रचना
बादल आवारा
आवारा बादल हूँ मैं
अपने झुंड से बिछड़ गया हूँ मैं
भटकन निरुद्देश्य न हो
इस उलझन में सिमट गया हूँ मैं।
सूरज की तपिश से बना हूँ मैं
धनात्मक हूँ या ऋणात्मक हूँ मैं
इस ज्ञान से अनभिज्ञ हूँ मैं
बादलों के ध्रुवीकरण
और टकराव की नियति से छिटक गया हूँ मैं
बिजली और गड़गड़ाहट से बिदक गया हूँ मैं।
सीमेंट-सरिया के जंगल से दूर
उस बस्ती में बरसना चाहता हूँ मैं
जहाँ.................................................
जल की आस में
दीनू का खेत सूखा है
रोटी के इंतज़ार में
नन्हीं मुनिया का पेट भूखा है
लहलहाती फ़सलों को
निहारने सुखिया की आँखें पथराई हैं
सीमा पर डटे पिया की बाट जोहती
सजनी की निग़ाहें उदास दर्पण से टकराई हैं
गलियों में बहते मटमैले पानी में
बचपन छप-छप करने को आकुल है
अल्हड़ गोरी हमउम्र सखियों संग
झूले पर गीत गाने को व्याकुल है।
माटी की भीनीं-सौंधी गंध
हवा में बिखर जायेगी
हरियाली की चादर ओढ़
पुलकित बसुधा लजायेगी
नफ़रत बहेगी नदी-नालों में
सद्भाव उगेंगे ख़्यालों में
उगे हैं बंध्या धरती पर शूल जहाँ
पुष्पित होंगे रंग-बिरंगे फूल वहाँ
सूखे कंठ जब तर-ब-तर होंगे
अनंत आशीष मेरे सर होंगे।
यह दृश्य देख
बादल होने पर इतराऊँगा
काल-चक्र ने चाहा तो
फिर बरसने आऊँगा........!!!
चलिए ! चलते हैं आज की रचनाओं की ओर
एक फ़िज़ूल ग़ज़ल
ज़ख़्म बदन पर अगर लगे तो भर ही जाएगा
लेकिन दिल का घाव हमेशा ताजा लगता है।
तुम्हारे नाम का पहला अक्षर!
मैं अपनी हथेली को
नहीं दिखती थी मुझे रेखाएं
न हथेली का रंग
हेल्थ ब्लंडर
जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
शैतान की कोई आत्मा नहीं होती
कि अब क्या उड़ना ?
ज़िन्दगी बीत गई कांपते हुए !
कुछ दिन पहले तक लगता रहा
नीली झील....
नीला अम्बर ,नीली झील
परदेस में गरमी
अभी बहुत है देर
हवा की ठिठुराती सिहरन
जाने में
उड़ान भरें
चलो बाँध स्वप्नों की गठरी
रात का हम अवसान करें
नन्हें पंख पसार के नभ में
फिर से एक नई उड़ान भरेंं
ज़िन्दगी जीना चाहती हूं
बूँद -बूँद कर हर रोज
कम हो रही है न
मारीना मेरा पहला प्यार
जिन्दगी के प्रति प्रेम से भरी एक बच्ची
किस तरह बड़े होते हुए चीज़ों को देखती है, महसूस करती है,
"आँख-मिचौली”
नहाया धोया …, गीला सा चाँद
उतर आया है , क्षितिज छोर पर
थोड़ी देर में खेलेगा हरसिंगार की
शाख पर आँख-मिचौली
नहीं मैं कोई कवयित्री!!
कवयित्रि!......नहीं ,
मै कहाँ कवयित्री कोई।
नहीं रचती मैं कोई कविता
मैं,सिर्फ एक 'नारी' हूँ ,
जीवन तो होम किया
जीवन तो होम किया
पर जिद ने मेरी
पत्थर को मोम किया।
वकील-ए-सफ़ाई बनने से इंकार
तेरे गुनाह पे, पर्दा-ए-झूठ, डाल तो दूं,
मुझे इन्साफ़ की देवी का खौफ़, रोके है.
उड़ान
छूकर दिखा दे आज
हिमालय की बुलंदी,
बनकर भगीरथ
गंग का आह्वान कर !
तेरी कहानी-1
रामरती (एक थी रामरती ) अपनी
निर्भीकता कई पीढ़ियों में बाँट कर
आखिर अपनी कोशिश में कामयाब हो ही
जाती और तैयार कर ही देती है न जाने कितनी मणिकर्णिका।
अन्याय के खिलाफ़
जब तक बैठा था दुम दबाकर,
दुःखी था मैं,
वार पर वार हो रहे थे,
पर खामोश था मैं,
एक भीड़ से निकल कर खिसक कर दूसरी भीड़ में
भीड़ से भीड़ में
खिसकता चलता है
मतलब को जेब में
रुमाल की तरह
नारी हूँ मैं
वाट्स अप जिंदगी
आंधी वर्षा से नरमाई रैन की ,
शीतल सुहानी भोर में अपार्टमेंट की,
बालकॉनी में बैठ चाय की चुस्कियां लेते,
मुझे तन्हाइयां बख्शो
कहीं इस शोर से आगे
अंधेरे घोर के आगे
दंगा
शासन करना हो जनता पर,
सजा लो राजनीति का समर.
अपमान के साथ मिले लाभ
से सम्मान के साथ हानि उठाना भला
दूध की कमाई दूध और पानी की पानी में जाती है
चोरी की ऊन ज्यादा दिन गर्माइश नहीं देती है
ज़ख़्म बदन पर अगर लगे तो भर ही जाएगा
लेकिन दिल का घाव हमेशा ताजा लगता है।
तुम्हारे नाम का पहला अक्षर!
मैं अपनी हथेली को
नहीं दिखती थी मुझे रेखाएं
न हथेली का रंग
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
डट कर चुनौतियों का किया सामना मगर
दो आंसुओं के वार से पल भर में हिल गए
हेल्थ ब्लंडर
जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
शैतान की कोई आत्मा नहीं होती
कि अब क्या उड़ना ?
ज़िन्दगी बीत गई कांपते हुए !
कुछ दिन पहले तक लगता रहा
नीली झील....
नीला अम्बर ,नीली झील
परदेस में गरमी
अभी बहुत है देर
हवा की ठिठुराती सिहरन
जाने में
उड़ान भरें
चलो बाँध स्वप्नों की गठरी
रात का हम अवसान करें
नन्हें पंख पसार के नभ में
फिर से एक नई उड़ान भरेंं
ज़िन्दगी जीना चाहती हूं
बूँद -बूँद कर हर रोज
कम हो रही है न
मारीना मेरा पहला प्यार
जिन्दगी के प्रति प्रेम से भरी एक बच्ची
किस तरह बड़े होते हुए चीज़ों को देखती है, महसूस करती है,
"आँख-मिचौली”
नहाया धोया …, गीला सा चाँद
उतर आया है , क्षितिज छोर पर
थोड़ी देर में खेलेगा हरसिंगार की
शाख पर आँख-मिचौली
नहीं मैं कोई कवयित्री!!
कवयित्रि!......नहीं ,
मै कहाँ कवयित्री कोई।
नहीं रचती मैं कोई कविता
मैं,सिर्फ एक 'नारी' हूँ ,
जीवन तो होम किया
जीवन तो होम किया
पर जिद ने मेरी
पत्थर को मोम किया।
वकील-ए-सफ़ाई बनने से इंकार
तेरे गुनाह पे, पर्दा-ए-झूठ, डाल तो दूं,
मुझे इन्साफ़ की देवी का खौफ़, रोके है.
उड़ान
छूकर दिखा दे आज
हिमालय की बुलंदी,
बनकर भगीरथ
गंग का आह्वान कर !
तेरी कहानी-1
रामरती (एक थी रामरती ) अपनी
निर्भीकता कई पीढ़ियों में बाँट कर
आखिर अपनी कोशिश में कामयाब हो ही
जाती और तैयार कर ही देती है न जाने कितनी मणिकर्णिका।
अन्याय के खिलाफ़
जब तक बैठा था दुम दबाकर,
दुःखी था मैं,
वार पर वार हो रहे थे,
पर खामोश था मैं,
एक भीड़ से निकल कर खिसक कर दूसरी भीड़ में
भीड़ से भीड़ में
खिसकता चलता है
मतलब को जेब में
रुमाल की तरह
नारी हूँ मैं
तुम क्या जानो
आज की नारी हूँ मैं !वाट्स अप जिंदगी
आंधी वर्षा से नरमाई रैन की ,
शीतल सुहानी भोर में अपार्टमेंट की,
बालकॉनी में बैठ चाय की चुस्कियां लेते,
मुझे तन्हाइयां बख्शो
कहीं इस शोर से आगे
अंधेरे घोर के आगे
दंगा
शासन करना हो जनता पर,
सजा लो राजनीति का समर.
"युद्धरत आम आदमी" के
मार्च २०१८ अंक में प्रकाशित नीरज नीर की कवितायें
निर्भय हो विचरण करती
अपनी क्षमता जानती
अनजान नहीं परम्पराओं से
सीमाएं ना लांघती |
से सम्मान के साथ हानि उठाना भला
दूध की कमाई दूध और पानी की पानी में जाती है
चोरी की ऊन ज्यादा दिन गर्माइश नहीं देती है
ख़्वाहिशात भी इक दिन बूढ़ा जाएंगे अपने
आप, न खींच इतना उम्र को रबर की
तरह, कुछ हाशिए के लोग भी
रखते हैं अहमियत अपनी
आदरणीय 'रवींद्र' जी की रचना उनके ही स्वर में
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा।
धन्यवाद।
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा।
धन्यवाद।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद