आजकल जिन्ना जी का जिन्न बहुत हिलोरे मार रहा है कोई सपोर्ट में खड़ा दिखाई देता है संसद भवन के समक्ष तो कोई विरोध में परन्तु हमारे कक्का जी को न जाने क्या हो गया है ? उन्हें रातभर नींद नहीं आती अपने स्वर्ग गमन के बाद की परिस्थितियों को लेकर। कल शाम कैसरबाग़ चौराहे पर स्थित चाय की हट्टी पर बैठे-बैठे कक्का जी अपने मन की व्यथा हमसे बाँचे जा रहे थे। का रे कलुआ ! तय ई बता कि हमरे स्वर्ग सिधारने के बाद का हमरो फोटू लोग चौराहों से उतार फेकेंगे। का हमरे नाम पर पड़े चौराहों व स्थानों के नाम, कक्का जी मार्ग ,कक्का जी की भूल-भुलैया, कक्का जी का जीवाश्म अनुसंधान संस्थान ,कक्का जी गन्ना संस्थान, का इ सभई का नाम बदल दिया जायेगा ! मैं कक्का जी के बकबक से परेशान होकर बोला -अरे कक्का ! तनिक तुम स्वर्ग तो सिधारो। तब की तब देखी जाएगी।
औक़ात से बाहर का काम
'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने आज के साप्ताहिक सोमवारीय अंक में तीन अतिथि रचनाकारों
आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी
आदरणीया रोली अभिलाषा जी
आदरणीय रोहिताश वर्मा जी का
हार्दिक स्वागत करता है।
पढ़िए इनकी रचनायें
फरेबियों के नगर दोस्त मत मगर जाओ
न यह कहूँगा के उल्फ़त में यार मर जाओ
मगर किसी से मुहब्बत हुज़ूर कर जाओ
इधर है हुस्नो शबाब और उधर रब जाने
ये है तुम्हीं पे इधर आओ या उधर जाओ
फ़क़त तुम्हीं से है बाकी उमीद अश्क अपनी
न गिरो आखों में कुछ देर ही ठहर जाओ
करूँ तुम्हें मैं ख़बरदार यह न ठीक लगे
फरेबियों के नगर दोस्त मत मगर जाओ
हाँ वह जो इश्क़ में ग़ाफ़िल किए हो वादे तमाम
अगर ख़ुशी हो तुम्हें शौक से मुकर जाओ
औक़ात से बाहर का काम
'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने आज के साप्ताहिक सोमवारीय अंक में तीन अतिथि रचनाकारों
आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी
आदरणीया रोली अभिलाषा जी
आदरणीय रोहिताश वर्मा जी का
हार्दिक स्वागत करता है।
पढ़िए इनकी रचनायें
फरेबियों के नगर दोस्त मत मगर जाओ
न यह कहूँगा के उल्फ़त में यार मर जाओ
मगर किसी से मुहब्बत हुज़ूर कर जाओ
इधर है हुस्नो शबाब और उधर रब जाने
ये है तुम्हीं पे इधर आओ या उधर जाओ
फ़क़त तुम्हीं से है बाकी उमीद अश्क अपनी
न गिरो आखों में कुछ देर ही ठहर जाओ
करूँ तुम्हें मैं ख़बरदार यह न ठीक लगे
फरेबियों के नगर दोस्त मत मगर जाओ
हाँ वह जो इश्क़ में ग़ाफ़िल किए हो वादे तमाम
अगर ख़ुशी हो तुम्हें शौक से मुकर जाओ
आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मैं मृत्यु हूँ...
कोई भी मुझे जीत नहीं सकता
मैं अविजित हूँ,
गांडीव, सुदर्शन, ब्रह्मास्त्र हो या
ए के-47...56
इनकी गांधारी हूँ मैं,
समता-ममता, गरिमा-उपमा
मद, मोह, लोभ-लालच,
ईर्ष्या, तृष्णा, दया,
शांति...आदि
सभी उपमाओं से परे हूँ;
मेरा वास हर जीवन में है
जन्म के समय से पहले ही
मेरा निर्धारण हो जाता है
बूढ़ा, बच्चा और जवान
मैं कुछ भी नहीं देखती
क्योंकि मैं निर्लज्ज हूँ;
गरीबी-अमीरी कुछ भी नहीं है
मेरे लिए,
दिन क्या रात क्या,
झोपड़ी, महल और भवन
इनके अंदर साँसे लेता जीवन
मेरी दस्तक से ओढ़ता है कफन
इमारतें हो जाती हैं बियाबान
मंजिल है हर किसी की
बस शमशान;
..........
अगर नहीं किया मेरा वरण
तो कैसे समझोगे प्रकृति का नियम
बिना पतझड़
कैसे होगा बसंत का आगमन,
पार्थ को रणक्षेत्र में
मिला है यही ज्ञान
मौत से निष्ठुर बनो
न हो संवेदनाओं का घमासान
गर डरो तो बस इतना कि
मैं आऊँ तो मुस्करा कर मिलना
अभी और जीना है
अच्छे कर्म करने को
ये पश्चाताप मन में न रखना,
मेरा आना अवश्यम्भावी है
मैं कोई अवसर भी नहीं देती,
दबे पाँव, बिन बुलाए
आ ही जाऊंगी
करना ही होगा मेरा वरण
फिर क्यों नहीं सुधारते ये जीवन
पूर्णता तो कभी नहीं आती
अंतिम इच्छा हर व्यक्ति की
धरी ही रह जाती है,
पूरी करते जाओ
अंतिम से पहले की हर इच्छाएं,
ध्यान रखो
औरों की भी अपेक्षाएं:
मैं तो आज तक
वो चेहरा ढूंढ रही हूँ
जिसके माथे पर
मेरे डर की सिलवटें न हों,
जिसके मन में
'कुछ पल और' जीने की
इच्छा न हो!
(आदरणीया रोली अभिलाषा जी)
खैर.....
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
फिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?
तुम पुछ रहे हो तो बतला रहा हूँ मैं
जूं तक मगर रेंगने वाली नहीं
मेरे आखिरी वक्त पर
मेरे मृत शरीर पर तुम
थोंप ही दोगे तथाकथित धर्म अपना.
सुनो! मानवता रही है मुझ में
सच को सच कहा है, खैर
भैंस के आगे बीन क्यों बजाऊं-
तुम एक दायरे में हो
आभासीय स्वतन्त्रता लिए हुए.
मेरा मुझ में निजत्व है शामिल
घृणा है इस गुलामी से
अब ना कहूँ कि किस धर्म से हूँ
थोडा कद बड़ा है मेरा
इंसान हूँ मगर
तुम तो शैतान कहो मुझे
ये तो मन की मन में रहेगी तेरे
कि भविष्य में ना कोई मेरी पदचाप ही बचे
ना तुम्हारा धर्म बाँझ हो.
आदरणीय रोहिताश वर्मा जी
तो चलिए ! कदम बढ़ाते हैं आज की रचनाओं की ओर
इश्क़...
इश्क़ के समंदर में डूबते है आशिक़ कई
बोलो वाह भई वाह भई वाह भई
अच्छे दिन
कितने अच्छे होते हैं वे दिन
जब शिकायतों और शिकवों के भाव
आसपास नहीं मंडराते।
पुस्तक समीक्षा
मनुष्यों में पाँचों इन्द्रियाँ
कमोबेश सक्रिय होती हैं जो अपने
अनुभवों के समन्वित मिश्रण को मन के धरातल पर रोपती हैं
बैसाख में मौसम बेईमान
कहीं बादल रहे उमड़
कहीं आँधी रही घुमड़
अब आ गयी धूप
चुभती चिलचिलाती
मौत का एक दिन मुअय्यन है ग़ालिब
बरात में बैंड की शुरुवात जगराता
से होती है पंखिड़ा रे उडी ने जाजो ,
फिर तूने मुझे बुलाया और फिर असली गाने शू होते
है जो काले कव्वे से लेकर तमाम तरह के भौंडे नृत्य तक जाते है
बोला था चलता हुआ वर्ष
बोला था नये
साल से चलता हुआ वर्ष
क्षणिकाएँ
अच्छी लगी
तुम्हारी आवाज में
लरजती मुस्कुराहट ।
बहुत दिन बीते यह
साये को अपनाया हमने
दिल नाजुक मोम सा है हमारा
तेज़ रोशनी से छिपाया हमने
एक बाँझ सी प्रतीक्षा
जम सी गयी हैं !
नहीं जानती उन्हें
किसका इंतज़ार है
जिंदगी का सफर
वो छोटा सा मकान,
उसमें खिड़कियाँ भी थे,
दरवाजे भी थे और रोशनदान भी,
पर कभी बंद नहीं होते थे।
शेर की किरकिरी
शेर और शेर के
बच्चों से परेशान होकर मैंने
स्वप्न मंजरी
कुछ स्वप्न मंजरी मेरी आँखों
के, जाएँ तुम्हारे पलकों
के तीर, रात ढले ले
तुम्हारे प्यार में
जब पत्तियों से छनकर किरणों
हवा के मीठे झोकों ने
अनकहे शब्द
जुबां पर आ कर,
ज़िंदगी ले लेती
एक नया मोड़।
ख़्वाब हमारे अपने हैं
हम तुम जब भी साथ हुए
पल वो बड़े निराले हैं ।
पल पल ये पल
आमतौर पर लोकप्रिय राजनेताओं,
प्रसिद्ध साहित्यकारों और समाजसेवियों द्वारा आत्मकथाएँ लिखी गई हैं।
बेहुनर हाथ
मोड़ दर मोड़ मिलेंगे राह भूले चेहरे
एक मुस्कान निगाहों में बसा लूँ तो चलूँ
क्या यह कोई यूटोपिया है ?
सोचा था कुछ ख्वाब बुनूँगी,
पालूंगी पोसूंगी उन ख्वाबों को. उनकी
नन्ही ऊँगली थामकर धीरे-धीरे हकीकत की
धरती पर उतार लाऊंगी. फिर वो ख्वाब पूरी धरती पर सच बनकर दौड़ने लगेंगे.
AMU में 'जिन्ना'..
अब कोई तथ्य बताने की कोशिश करेगा
तो उसे ‘देशद्रोही’, ‘जिन्ना समर्थक’, ‘पाक परस्त’
क़रार देने मे पलक झपकने मे देर नहीं लगाई जाएगी.
जिन्ना विवाद
पर यहाँ बात ए.एम.यू. में हुए जिन्ना
विवाद की है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिन्ना को
लेकर यह कहा कि आज़ादी और विभाजन से
पहले स्वतंत्रता आन्दोलन में जिन्ना का भी योगदान था।
धूप.......
पहनकर धूप की पायल ,
अंगारोंकी तपिश में नाचती सड़कें ,
तन्हाई में बात कर रहे है सूरज से ...
हर तरफ शोर है
शोर, शोर, शोर
हर तरफ शोर है
पिपासा रक्तस्त्राव से ग्रसित है
तुम निश्चित कर लो
अपनी पगडण्डी
मोहसिन नकवी
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
(आदरणीया रोली अभिलाषा जी)
खैर.....
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
फिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?
तुम पुछ रहे हो तो बतला रहा हूँ मैं
जूं तक मगर रेंगने वाली नहीं
मेरे आखिरी वक्त पर
मेरे मृत शरीर पर तुम
थोंप ही दोगे तथाकथित धर्म अपना.
सुनो! मानवता रही है मुझ में
सच को सच कहा है, खैर
भैंस के आगे बीन क्यों बजाऊं-
तुम एक दायरे में हो
आभासीय स्वतन्त्रता लिए हुए.
मेरा मुझ में निजत्व है शामिल
घृणा है इस गुलामी से
अब ना कहूँ कि किस धर्म से हूँ
थोडा कद बड़ा है मेरा
इंसान हूँ मगर
तुम तो शैतान कहो मुझे
ये तो मन की मन में रहेगी तेरे
कि भविष्य में ना कोई मेरी पदचाप ही बचे
ना तुम्हारा धर्म बाँझ हो.
आदरणीय रोहिताश वर्मा जी
तो चलिए ! कदम बढ़ाते हैं आज की रचनाओं की ओर
इश्क़...
इश्क़ के समंदर में डूबते है आशिक़ कई
बोलो वाह भई वाह भई वाह भई
अच्छे दिन
कितने अच्छे होते हैं वे दिन
जब शिकायतों और शिकवों के भाव
आसपास नहीं मंडराते।
पुस्तक समीक्षा
मनुष्यों में पाँचों इन्द्रियाँ
कमोबेश सक्रिय होती हैं जो अपने
अनुभवों के समन्वित मिश्रण को मन के धरातल पर रोपती हैं
बैसाख में मौसम बेईमान
कहीं बादल रहे उमड़
कहीं आँधी रही घुमड़
अब आ गयी धूप
चुभती चिलचिलाती
मौत का एक दिन मुअय्यन है ग़ालिब
बरात में बैंड की शुरुवात जगराता
से होती है पंखिड़ा रे उडी ने जाजो ,
फिर तूने मुझे बुलाया और फिर असली गाने शू होते
है जो काले कव्वे से लेकर तमाम तरह के भौंडे नृत्य तक जाते है
बोला था चलता हुआ वर्ष
बोला था नये
साल से चलता हुआ वर्ष
क्षणिकाएँ
अच्छी लगी
तुम्हारी आवाज में
लरजती मुस्कुराहट ।
बहुत दिन बीते यह
साये को अपनाया हमने
दिल नाजुक मोम सा है हमारा
तेज़ रोशनी से छिपाया हमने
एक बाँझ सी प्रतीक्षा
जम सी गयी हैं !
नहीं जानती उन्हें
किसका इंतज़ार है
जिंदगी का सफर
वो छोटा सा मकान,
उसमें खिड़कियाँ भी थे,
दरवाजे भी थे और रोशनदान भी,
पर कभी बंद नहीं होते थे।
शेर की किरकिरी
शेर और शेर के
बच्चों से परेशान होकर मैंने
स्वप्न मंजरी
कुछ स्वप्न मंजरी मेरी आँखों
के, जाएँ तुम्हारे पलकों
के तीर, रात ढले ले
तुम्हारे प्यार में
जब पत्तियों से छनकर किरणों
हवा के मीठे झोकों ने
अनकहे शब्द
जुबां पर आ कर,
ज़िंदगी ले लेती
एक नया मोड़।
ख़्वाब हमारे अपने हैं
हम तुम जब भी साथ हुए
पल वो बड़े निराले हैं ।
पल पल ये पल
आमतौर पर लोकप्रिय राजनेताओं,
प्रसिद्ध साहित्यकारों और समाजसेवियों द्वारा आत्मकथाएँ लिखी गई हैं।
बेहुनर हाथ
मोड़ दर मोड़ मिलेंगे राह भूले चेहरे
एक मुस्कान निगाहों में बसा लूँ तो चलूँ
क्या यह कोई यूटोपिया है ?
सोचा था कुछ ख्वाब बुनूँगी,
पालूंगी पोसूंगी उन ख्वाबों को. उनकी
नन्ही ऊँगली थामकर धीरे-धीरे हकीकत की
धरती पर उतार लाऊंगी. फिर वो ख्वाब पूरी धरती पर सच बनकर दौड़ने लगेंगे.
AMU में 'जिन्ना'..
अब कोई तथ्य बताने की कोशिश करेगा
तो उसे ‘देशद्रोही’, ‘जिन्ना समर्थक’, ‘पाक परस्त’
क़रार देने मे पलक झपकने मे देर नहीं लगाई जाएगी.
जिन्ना विवाद
पर यहाँ बात ए.एम.यू. में हुए जिन्ना
विवाद की है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिन्ना को
लेकर यह कहा कि आज़ादी और विभाजन से
पहले स्वतंत्रता आन्दोलन में जिन्ना का भी योगदान था।
धूप.......
पहनकर धूप की पायल ,
अंगारोंकी तपिश में नाचती सड़कें ,
तन्हाई में बात कर रहे है सूरज से ...
हर तरफ शोर है
शोर, शोर, शोर
हर तरफ शोर है
पिपासा रक्तस्त्राव से ग्रसित है
तुम निश्चित कर लो
अपनी पगडण्डी
मोहसिन नकवी
टीपें
अब 'लोकतंत्र' संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार'
सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित
होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आज्ञा दें !
'एकलव्य'
उद्घोषणा
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
'लोकतंत्र 'संवाद मंच पर प्रस्तुत
विचार हमारे स्वयं के हैं अतः कोई भी
व्यक्ति यदि हमारे विचारों से निजी तौर पर
स्वयं को आहत महसूस करता है तो हमें अवगत कराए।
हम उक्त सामग्री को अविलम्ब हटाने का प्रयास करेंगे। परन्तु
यदि दिए गए ब्लॉगों के लिंक पर उपस्थित सामग्री से कोई आपत्ति होती
है तो उसके लिए 'लोकतंत्र 'संवाद मंच ज़िम्मेदार नहीं होगा। 'लोकतंत्र 'संवाद मंच किसी भी राजनैतिक ,धर्म-जाति अथवा सम्प्रदाय विशेष संगठन का प्रचार व प्रसार नहीं करता !यह पूर्णरूप से साहित्य जगत को समर्पित धर्मनिरपेक्ष मंच है ।
धन्यवाद।
सभी छायाचित्र : साभार गूगल
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आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। आपके विचार अनमोल हैं। धन्यवाद